टेक- कब लग तोहे समझाऊँ, भोळा रे मन कब लग तोहे समझाऊँ।
चौक-1 घोड़ो रे होय तो लगाम देवाहूं, खासी झीण डलाऊँ।
असवार होकर ऊपर बैठकर, चाबुक दे समझाऊँ।
भोळा रे मन कब लग तोहे समझाऊँ।
चौक-2 हाथी रे होय तो जंजीर बंधाड़ू, चारी पाँय बंधाड़ू,
मावत होकर ऊपर बैठे, तो अंकुस दे समझाऊँ।
भोळा रे मन कब लग तोहे समझाऊँ।
चौक-3 सोनू रे होय तो सुवागी बुलाऊँ, खासा ताव देवाड़ों।
नई फूकणी से फुकवा लाग्या, तो पाणी से पिघला
भोळा रे मन कब लग तोहे समझाऊँ।
चौक-4 लोहो रे होय तो लोहार बुलाऊँ, आइरण घाट घड़ाऊँ।
लइ सन्डासी खिंचवा लाग्या, तो यंत्र मा तार चलाऊँ।
भोळा रे मन कब लग तोहे समझाऊँ।
छाप- ज्ञानी रे होय तो बताऊँ, लइ पोथी समझाऊँ
कइये कबीर सुणो भाई सदू, तो पत्थर को क्या समझाऊँ
- अरे भोले मन! तुझे कब तक समझाऊँ। घोड़ा हो तो उसे लगाम लगाऊँ और उस पर मजबूत झींग कसवाऊँ और उस पर सवार होकर बैठूँ और चाबुक से उस समझाऊँ। अरे! तू तो मनुष्य है और सभी जीवधारियों में एकमात्र समझदार जीव है, तुझे क्या घोड़े को समझाने के समान समझाना पड़ेगा?
हाथी हो तो पैर में जंजीर बाँधूँ (चारों पैरों में जंजीर बँधाऊँ), महावत होकर ऊपर बैठकर अंकुश से समझाऊँ। तू तो मनुष्य है।
सोना हो तो सुहागी बुलाकर और सोने के साथ डालकर खूब ताव दिलाऊँ (आग से ताव देने पर ही सोना पिघलता है) और फिर संडासी से पकड़कर पीटते हुए तारों में परिणत करूँ और आवश्यक डोरे-कंठी बनाऊँ। तू तो मनुष्य है। क्या सोने के समान आग पर तपाकर फूँकणी से फूँक देकर तार बनवाऊँ।
लोहा हो तो लोहार को बुलाऊँ और निहाई (लोहे की एरण) पर रखकर घड़वाऊँ और संडासी से पकड़कर हथौड़े से पीटते हुए तार बनवाऊँ।
ज्ञानी हो तो ज्ञान बताऊँ और पोथी लेकर समझाऊँ। कबीरदासजी कहते हैं कि- हे साधु भाइयों! सुनो, पत्थर को क्या समझाऊँ।
इस गीत में मनुष्य को शिक्षा दी गई है कि तू समझ जा और अच्छे कर्म करते हुए परिश्रम की कमाई से जीवन व्यतीत करते हुए साथ में इस संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिए भगवान की भक्ति कर। गीत में घोड़े, हाथी, स्वर्ण, लोहा का उदाहरण देते हुए मनुष्य को समझाया गया है।
किसी की मृत्यु होने पर एकत्रित जनसमूह के समक्ष मृत्यु गीत गाते हैं। मरने वाला परलोक सिधार जाता है किन्तु गीतों से जनमानस को अच्छे कर्म के प्रति प्रेरित कर भगवान का भजन करने की प्रेरणा दी जाती है।