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भरोसैमंद आखर / नंद भारद्वाज

म्हैं अहसानमंद हूं
मिनखपणै रा वां मोभी पूतां रो
जिकां री खांतीली मेधा
अर अणथक जतन
अमानवी-यातनावां सूं
गुजरतां थका
भेळा कर पाया है कीं
भरोसैमंद आखर
जिका
आपां री भटक्योड़ी उम्मीदां साथै
जुड़ता ई
खोल सकै एक नूवों मारग
एक जीवंत लखांण
परतख
अर असरदार
किणी धारदार हथियार री भांत
वै चीर सकै अंधारै रो काळजो
मुगती दिरा सकै
तळघर में कैद उण उजास नै
जिको दे सकै आंख्यां नै नूंवी दीठ
ओप उणियारां नै
एक अछेह आतम नै विस्वास-

जिण रै परवाण
उण ‘दयानिधान’ री
नीयत पिछाणी जा सकै ।