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भरोसौ / गुणसागर 'सत्यार्थी'

ठाँड़ो आज-
भरोसे की बीता भर धरती पै
मानुस।
अपने गेरँऊँ
आई नदी-सौ देख समुन्दर
पल-छिन सोसत,
बूड़ न जाबै
पाँव-तरे की धरती
दंद-फंद औ चाल-फरेबी के
पानूँ में!
उतै
दूबरौ और बिचारौ
एक भरोसौ
दिन बूड़े कौ सूरज-सौ हो
हराँ-हराँ
आँखन-सामूँ सें
हिलबिलान-सौ हो रऔ।