ठाँड़ो आज- भरोसे की बीता भर धरती पै मानुस। अपने गेरँऊँ आई नदी-सौ देख समुन्दर पल-छिन सोसत, बूड़ न जाबै पाँव-तरे की धरती दंद-फंद औ चाल-फरेबी के पानूँ में! उतै दूबरौ और बिचारौ एक भरोसौ दिन बूड़े कौ सूरज-सौ हो हराँ-हराँ आँखन-सामूँ सें हिलबिलान-सौ हो रऔ।