बटेसर की दुल्हन
बच्चे की भूख से द्रवित हो कर
पड़ोस से मांग लाई है
तीन मुट्ठी आँटा
रोज-रोज का यह दुःख
रोज-रोज की पीड़ा
आखिर कब आयेंगे मेरे स्वामी ?
बटेसर की दुल्हन
सोचती जाती है
आँटा गूँथती जाती है
आँसू बहते जाते है।
और उसे
यह पता भी नहीं चलता
कि कब
कोवा भर आँटा
आँसू से सन-सन कर
सफेद कीचड़ बन गया है
आज का भी
उसका भाग्य
उसके बच्चे का भाग्य
कीचड़ में सन गया है।