Last modified on 19 अगस्त 2015, at 18:19

भावन / ईशनाथ झा

भावना नवनव निरन्तर,
अंकुरित हो नवल दल लए, किन्तु मानस मूक जर्जर।
तूलिका लए की करब, यदि संगमे नहि रंग सुन्दर?
संस्मृतिक रहि जाए केवल चिह्न धूमिल चित्रपट पर।

हो क्षणिक आवेग-की हम उदधि लंघन हेतु निर्बल?
वा प्रबल झंझा प्रवातक गति शिथिल करबाक नहि बल?
किन्तु बन्धन देखि नभसँ खसि पड़ी हम आबि महि पर।

आह! भीषण ग्रीष्म ज्वालामे कतेको वर्ष बीतल,
गेल ओ पावस कतए, नहि उमड़ि गरजल कएल शीतल?
की नयन-घन-वारिसँ हो तप्त सैकत भूमि हरिअर?

यातनाक प्रभाव तन पर किन्तु के रोकत मनोजव?
सुनल बहुत विहाग वीणे! सुनब सम्प्रति राग भैरव।
एक झंकृत नादसँ करु नैश तिमिरक अन्त सत्वर।
भावना नवनव निरन्तर।