कत्तेॅ दिन बितैलियै
भूखें सुतलियै
रहलियै सब्भेॅ परेशान
रात गिनी-गिनी केॅ मल्लाह कानै छै।
बगिच्चा मेॅ कौआ
मैना, मोर पपैहिया
आश लगाय केॅ
बाट जोहैं छै
समय गुजरी गेलां के बाद
आँखी रोॅ लोर
आबेॅ रूकी गेलै
सरकारी जबेॅ मदद मिललै।
दुर होय गेलै उदासी
सेठ
साहुकार
चाटुकार
सब्भैं रोॅ दिन रात
होय गेलै बेकार।
संघर्ष रोॅ होलै जीत
भागी गेलै उदासी।