सड़क किनारे, बित्ते भर का
टूटा-फूटा खड़ा शिवाला
उसमें कैसे करें गुज़ारा
देवों के, असुरों के बाबा !
मुकुट नहीं है, बाबा के सिर
काँटेदार धतूरे के फल
या रग्घू के गले बताशे
या फिर राघव के नीलोत्पल ।
सड़क किनारे छत्रक जैसा
बेढंगा-सा उगा शिवाला
जहाँ पालते पशु आवारा
मनुजों के, दनुजों के बाबा !
पेट्रो के इस युग में उनके
गंगाजल की माँग नहीं है
इसीलिए बाबा के घर में
देखो भूजी भाँग नहीं है ।
सड़क किनारे नित असँख्य
सन्तानों के संग
सोता है बूढ़ा बेचारा
जीवों-मरजीवों के बाबा !
पाट-पटोरा, सोना-चाँदी
जो भरते हैं औरों के घर
वे देवों के देव स्वयं
रहते मसान में, बने दिगम्बर ।
सड़क किनारे, बड़े जतन से
विश्वासों पर टिका शिवाला
जहाँ आज डाले हैं डेरा
नंगो के, चंगों के बाबा !