मौत की उन रस्सियों से
जीवन के एक सिर्फ सुखद क्षण की भीख माँगी थी।
हार के द्वार से साहस बटोर कर
सिर्फ एक पल की जीत माँगी थी।
छिन्नमस्ता अमामयी
कुहेलिका के नील आँचल से
एक किरण की फाँक माँगी थी।
माना कि ये सब चुप रहे
बेशील, आँखे बन्दकर, मुँह फेर
पर तुम भी तो आँख फेरने लगे
जब मैंने भीगे मन से
केवल पगधूलि माँगी थी।
[ कलकत्ता : मेकलौड हाउस, 1958 ]