मनचाहे सपनों को / अश्वघोष

  मनचाहे सपनों को
कोख में दबा
बंजारे दिन
हो गए हवा

नयनों के गेह से
गूँगा विश्वास
सहमा-सा देख रहा
अनुभव की प्यास
तन-मन में ेमी हुई
नींद की दवा

सूली पर लटके-से
लगते हैं दिन
चिड़ियों-सी उड़ जातीं
रातें दुल्हिन
सड़कों पर बिखरा है
मौन का रवा
हो गए हवा ।
    

      

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