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मनसिंगार / विमलेश शर्मा

फ़क़त रेशम-सा मन था
रेशम में कहाँ गाँठें पड़ा करती हैं
तुम्हें छूने का सलीक़ा नहीं आया
तो इस मन को क्या दोष दूँ!

लड़की हरसिंगार को देखती हुई
किसी निर्मोही की निष्ठुरता को
हवाओं में घोल रही थी।

हरसिंगार का वह पुष्प
उस रात
डाल पर देर तक ठिठका रहा था
मन केसर की बाड़ी हुआ जाता था

पर मन की सुध लेने वाला
एक मन ही था वहाँ!