प्राची नवल दुलइया के नइँ खुले अधर अरुनारे,
चमक रए नभ, रजनि-भुजाई के नैना रतनारे।
पै चंदा मामा के मौं पै छाई कछु पियराई,
भृगू तरइया कछुँ ऊँचे सैं उतर धरा नियराई।
अँधयारी के आँचर भीतर दुकौ हतौ उजियारौ,
जीतै अब नौ बखरी में नइँ दिखा परौ भुन्सारौ,
पै कछु-कछु जोती-सरूप की जोती मलिन भई सी,
जी सैं मनियाँ मन में भुन्सारे की जान गई ती।
उठी समार भार जोबन कौ उठतन लइ अँगड़ाई,
आलस जीतन खौं साहस नैं मनों कमान चढ़ाई।
अल्हड़पन के भाव अग-अंगन में उमग रए ते,
किरतिमता खौं दैन चिनौती मानो सजग भए ते।
बिन कलंक मौं पै रिखिच रई ती रेखा संजमता की,
जी सैं चन्दा हार मान गऔ रातें उज्जलता की।
सावक कलभ-कुंभ से दोऊ उकस उरोज रए ते,
काम मावती के अंकुस-भय नइँ भयभीत भए ते।
कसकै जूरौ, मार कछौटा, टइया दै कैं डेरौ,
चल दई मनियां गइया दोबे, नइँ काऊ खौं टेरौ।
बच्छा मेल लगाकैं लौना दो लइ कारी गइया,
लगी फटन पोरी पौ, होउन लागी बिदा जुनइया।
तौ नौं बँदी भई उसरा की डिड़की भैंस लखैरी,
ढील पड़ेरू दोऊ हाँतन काड़ौ दूद पसेरी।
अब बखरी में भऔ उजयारौ, आ गई बड़ी भुजाई,
तीके संग मठा भमाउन की सब तार लगाई।
मठा भमत में भौजाई की बजन लगी करधौनी,
हँसी मनइँ मन मनियाँ सुन कै मन्द-मन्द धुन नौनी।
लख मुसकाबौ भौजाई नें ढीली करी मथानी,
नैनूँ काड़ लगा दओ गलुअन, मनियाँ मनैं लजानी।
तौ नौ रोओ भतीजौ, दौरी तुरत ताय मौंगाबे,
उठा ल्याइ तीखौं नैनूँ के संगै खाँड़ खुआबे।
देख उरइयाँ, उठा परए खौं बैलन पै धर ज्वाँरी,
चल दइ मनियाँ बड़े खेत की भरवे क्यारी-क्यारी,
साँची सरल भाव की मूरत सबइ गनन में नौनी,
उन नौनी धन-सी नइँ जो घर करै न राँटा-पौनी।
माउठ के मुतियन के संगै खेतन में जा खेली,
जाक तन नै सरदी-गरमी की बिपता है झेली।
ऐसीं बिटियाँ करती नइयाँ घर में न्यारक-न्यारौ,
‘मित्र’ कऊँ रएँ, करती रउतीं दोउ कुल में उजायारौ।।