इस हल्की-फुल्की बारिश में
कैसे भींगेगी मन-चूनर
जब तक प्रभु-भक्ति-सिन्धु के तल
का तुम संस्पर्श न पाओगे
ये ज्ञान-ग्रंथ की बातें तो
मन को भरमाने वाली हैं
पोथी-पतरे, चंदन चिमटे,
वल्कल की चर्चा जाली है
यह भक्तिमार्ग ही मानवता-
को शिखरों तक पहुँचाता है
कीर्तन, गुणगान सदाशिव का-
ही मंजिल तक ले जाता है
यदि बूँद समुद्र बनानी हो,
कुंडलिनि सुप्त जगानी हे,
दोनों ही सुलभ, अगर कीर्तन-
तुम खुले हृदय से गाओगे
दोनों बाँहें ऊपर पसार
हो मात्र दृष्टि से सहस्रार
आसीन वराभय मुद्रा में-
श्वेताम्बुज पर सद्गुरू उदार
मन प्रभु-चिंतन में सराबोर
निष्काम सजा-सँवरा होगा
आँखों में अश्रु भरे होंगे
चरणों पर उर बिखरा होगा
जब मात्र सदाशिव की मनहर-
छवि-शिरा-शिरा में पाओगे
सीकर समुद्र बन जायेगा
तुम ‘नर’ से ‘हरि’ हो जाओगे।