मन
तू मेरे साथ
चलता क्यों नहीं?
चाँदनी पीता है
फिर भी
ये जलन क्यों?
रोशनी जी कर भी
तुझमें
तम सघन क्यों?
है ग़ज़ल सा
पर मचलता
क्यों नहीं?
रेशमी रुत
जब बुनी
कच्ची बुनी है
जब सुबह
कोई चुनी
ढलती चुनी है
बावलापन ये
बदलता क्यों नहीं?
मन
तू मेरे साथ
चलता क्यों नहीं?
मैं लिखूँ कुछ
और कुछ तू
बाँचता है
मैं चलूँ पूरब
तू पश्चिम
भागता है
उफ़! तआल्लुक ये
संभलता क्यों नहीं?