Last modified on 6 जून 2010, at 11:41

महानगर / मुकेश मानस

लोगों को ढूँढता फिरा मैं
लोग नहीं मिले
घर मिले बहुत
मार तमाम घर

घर थे बहुत
और लोग नहीं थे घरों में

घर ढूँढता फिरा मैं
घर नहीं मिले
लोग मिले बहुत
मार तमाम लोग

लोग थे बहुत
और उनकी आँखों में घर थे

रचनाकाल : 1998