Last modified on 7 अगस्त 2009, at 23:22

महाराणा प्रताप / वियोगी हरि

अणु-अणु पै मेवाड के, छपी तिहारी छाप।
तेरे प्रखर प्रताप तें, राणा प्रबल प्रताप॥

जगत जाहिं खोजत फिरै, सो स्वतंत्रता आप।
बिकल तोहिं हेरत अजौं, राणा निठुर प्रताप॥

हे प्रताप! मेवाड मे, तुहीं समर्थ सनाथ।
धनि-धनि तेरे हाथ ये, धनि-धनि तेरो माथ॥

रजपूतन की नाक तूँ, राणा प्रबल प्रताप।
है तेरी ही मूँछ की राजस्थान में छाप॥

काँटे-लौं कसक्यौ सदा, को अकबर-उर माहिं।
छाँडि प्रताप-प्रताप जग, दूजो लखियतु नाहिं॥

ओ प्रताप मेवाड के! यह कैसो तुव काम?
खात लखनु तुव खडग पै, होत काल कौ नाम॥

उँमडि समुद्र लौं, ठिलें आप तें आप।
करुण-वीर-रस लौं मिले, सक्ता और प्रताप॥