Last modified on 5 मार्च 2011, at 16:57

मानस मंदाकिनी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

मानस मंदाकिनी
(पर्वतीय जीवन की सृष्टि)
जिसकी फैली हुयी
रजत जटा पर
पूरब में दिनकर चमक रहा है
पश्चिम की ओट जहां
रजनी छिप कर बैठी है,
जिसकी कटि पर धान लहराते हैं ,
मस्तक पर चूर-चूर तारे हैं
जिसके पदों पर घोर -घोष कर
दीप्ति सुरधुनि गिरती है।
( मानस मंदाकिनी कविता का अंश)