Last modified on 15 मई 2014, at 16:28

मामाजी! / गोपालप्रसाद व्यास

हे मामा जी!
लो आज आपसे हो जाए
अपनी कुछ रामा-श्यामा जी!
हे मामा जी!

पत्नी पर मैंने लिखा
लिखा उनके प्राणोपम भाई पर,
साली पर मैंने लिखा
लिखा अपनी पवित्र भौजाई पर।
सासू पर मैंने लिखा
ससुरजी पर अक्षत डाल दिए
अब तुम ही सिर्फ बचे हो
मेरे काव्य-जगत के गामा जी!
हे मामा जी!

माँ से बढ़कर हैं मामा जी
माँ जी से बढ़कर मामा जी
जीमा कि नहीं मामा जी ने
होता इस पर हंगामा जी!
ढीली आदत, ढीली अंटी
ढीली आंखें, ढीला चश्मा
ढीली टांगों में लदर-पदर
पहने ढीला पाजामा जी!
हे मामा जी!

नभ में चंदा मामा नामी
'माहिल' मामा थे हंगामी
मामा वरेरकर इस युग में
बन गए भांजों के स्वामी।
इस राजनीति में, आज़ादी
के बाद ज़रा-सी हिम्मत कर
जो बने इंदिरा के मामा
उनके बज रहे दमामा जी!
हे मामा जी!

मामा जी के घर आते ही
भारी हल्ला हो जाता है
मम्मी का उनके आते ही
भारी पल्ला हो जाता है
पापा को लगता फुलस्टॉप
बच्चे ब्रेकिट में आते हैं
चाचा, ताऊ, नौकर-चाकर
सब पर लग जाता कॉमा जी!
हे मामा जी!

मामा जी को लस्सी पसंद
मामा जी को मच्छर लगते
मामा जी जल्दी सोते हैं,
मामा जी देरी से जगते।
मामा जी मिर्चें कम खाते
मंगवा दो इनको गोल्ड फ्लैक
ये पीते नहीं पनामा जी!
हे मामा जी!

मामा जी के घर आते ही
पापा की छुट्टी होती है।
गुड्डू से झगड़ा होता है
गुड्डी से कुट्टी होती है।
उनके आते ही मम्मी की
आमदनी बढ़ने लगती है
लेकिन मामा के जाते ही
चुक जाता उनका नामा जी!
हे मामा जी!

मामा पक्के ऑडीटर है
रकमों को लिख रख लेते हैं।
बैलेंस पिताजी का फिर भी
वे नहीं बिगड़ने देते हैं।
उनको सब मिलकर सहते हैं
सब कान दबाए रहते हैं
वे इस प्रकार हैं सम्मानित
जिस तरह दलाई लामा जी!
हे मामा जी!