आसान नै छै
माय पर कविता लिखवोॅ
कविता के हर एक सीमा सें अलग
माय केॅ बांधवोॅ
छन्द, अनुप्रास, अलंकार आकि शब्दोॅ में।
सौसे सृष्टि के सृजन सौंदर्य
काल रोॅ निर्बाध चलै वाला ई चक्र
आरो समय के संकेतोॅ पर
ई जे चली रहलोॅ छै
सुर, लय, ताल गति अपनै सें,
धरती आरो आकाश
सूरज, चंदा आरोॅ तारा सीनी
सब संचालित छै माय सें।
तीनोॅ गुण, तीनोॅ देव, आरो तीनोॅ तापोॅ के
जन्मधात्री माय केॅ
शब्दोॅ में केनां बाँधेॅ सकभोॅ कवि।
धरती रोॅ धैर्य छेकै माय
आकासोॅ के विस्तार छेकै माय
सागर रोॅ गंभीरता
क्षितिज रोॅ बिनम्रता
चाँद रोॅ शीतलता
कहाँ-कहाँ नै छै माय।
हवा रोॅ प्राण बनी केॅ
ओकरा पोर-पोर में
बजतें रहै छै माय,
संतान के भींगला बसतर सें लै करी केॅ
ओकरोॅ बुद्ध बनला के बादोॅ तांय
सुजाता रोॅ खीर बनी
प्रेम, दया, करूणा आरोॅ ममता रूपोॅ में
दौड़तें रहै छै माय
शकुंतला, कौशल्या, देवकी बनी केॅ
भरत, राम, कृष्णा नांकी संतानोॅ के धमनी में
हे ममता के आगर माय।
हमरोॅ प्रार्थना स्वीकारोॅ
आरो फेरू जनोॅ कृष्ण, राम, गाँधी केॅ
समर्थ योग्य संतानैह बचैतेॅ धरती केॅ
दिलैतै तरान मानवता केॅ
माय तोंय कहाँ छोॅ
कहिया एैभेॅ तोंय ?