सदियों के बंधन मिटाते चलो तुम,
तम के ये परदे हटाते चलो तुम,
अवरुद्ध राहों के पत्थर सभी ये
निर्झर सदृश सब उड़ाते चलो तुम !
विष दासता का पिलाया गया जो,
शोषण का कोल्हू चलाया गया जो,
असफल सभी नीति ऐसी करो —
जिससे उठे सिर, दबाया गया जो !
जन-युग समर्थक, प्रजातंत्र का बल
शत-शत स्वरों से यह गुंजित हो प्रतिपल,
जनपद जगे ले विजय की मशालें
श्रम से अभावों के फट जायँ बादल।