यह जो खत
तुमने उठाया है,
परदेश गए
मेरे मित्र का
आया है।
इसके हरफ-हरफ में
वह नहीं,
उसका श्रम बोलता है।
सूंघो तो जरा,
पसीने की बू आएगी।
2004
यह जो खत
तुमने उठाया है,
परदेश गए
मेरे मित्र का
आया है।
इसके हरफ-हरफ में
वह नहीं,
उसका श्रम बोलता है।
सूंघो तो जरा,
पसीने की बू आएगी।
2004