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मुंडी / प्रभात कुमार सिन्हा

अरे भाइयों !
बायीं ओर अलग-अलग
कितनी मुंडी की गिनती करूं ?
सभी मुंडी कमजोर लग रही हैं
कूट की तरह कमजोर हो गयी हैं सभी खोपड़ियां
 
दुश्मन तोड़ रहे हैं इन
अलग-अलग मुंडियों को
कोई है जो इन मुंडियों को मिलाकर
एक बड़ी मुंडी कर दे ?
खोपड़ी बड़ी होगी तो
ललाट भी चौड़ी और मजबूत होगी
एक ही ढूंस में चित्त हो जायंगे दुश्मन
 
चलो ,
विलंब कर रही हैं मिलने से ये मुंडियां
इस बीच कविगण ही अपनी मुंडियां मिला लें
पूरी संभावना है कि
दफ़्तियों की तलवार भांजने वाली सभी बेशर्म मुंडियां
लजाकर एक हो जायंगी
 
फिलहाल , मुझे भी किसी मुंडी के घर जाने से परहेज है ।