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मुक्ति/ श्राप / प्रतिमा त्रिपाठी

उससे प्रेम करके मैं मुक्त होती हूँ
मुझसे प्रेम करके वो श्रापित होता है
हमदोनों एक-दूसरे के प्रेम में
जीवन का सर्वोच्च भोगते हैं
और इन सबसे परे ईश्वर हममें
धरती पर अपना जन्म भोगता है !