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मुक्ति कहाँ / संतोष श्रीवास्तव

जर्मेन ग्रियर तुम ठीक ही तो कहती हो
स्त्री मुक्ति आन्दोलन ने स्त्री को तीन चीज़ें ही तो दी हैं लिपिस्टिक, हाईहील और ब्रा कपडों की जगह बिकनी पहन खुद को मुक्त मान बैठी औरत परदा बुर्का हटा
वस्तु बनकर बाज़ार में उतारने की साजिश
समझ नहीं पाई औरत नहीं समझ पाई
सौन्दर्य प्रतियोगिता से
बिकनी राउँड हटा दिये जाने से पितृसत्ता के चरमराने की वजह वह कहाँ जान पाई कि देह की आज़ादी विचारों की आज़ादी नहीं है बल्कि पितृसत्ता कि
सोच की ही गुलामी है औरत की आज़ादी से डरने लगे हैं
धर्म, बाज़ार और पितृसत्ता मुक्त व्यक्तित्व के दमन की कीमत पर औरत को देह रूप में बनाये रखने के विचारों के आन्दोलन से
घिर चुके हैं वे