मुझको अरसा हुआ मुस्कुराए हुए
जी रहा बेवजह सर झुकाए हुए
अश्क़ पीते हुए कट गई ज़िन्दगी
राह-ए-कज़ा में हूँ दिल जलाए हुए
सहरा-सहरा गुलिस्ताँ बनाता गया
आन्धियों की नज़र से बचाए हुए
क़दम-दर-क़दम बढ़ता ही मैं रहा
ग़म नहीं गढ़ूँ मैं जंग खाए हुए
देता काश माँझी जीने की एक मुहलत मुझे
ग़म भुलाए हुए मुस्कुराए हुए