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मुझौसा / नंदकिशोर शर्मा

फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ
आब न रहवै हम मुँह सी केॅ
दादा बाप सुनैबै हम्मू, पुरखा सात घिनैवै हम्मू
हाँाि अगर चैलैतै कोढ़ी, हम्मु चलैबै बेलना लोढ़ी
आय तमाशा देखतै बुढ़िया, जेकरा झड़क बरै गारी के
फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ

आब न रहबै परदा भितरी, मैंह देबै हम सड़ल अंतरी
नै ज्यादा नै कम्मी रहबै, आंय उहै की हम्मी रहबै
चुल्हा, खपड़ी, छिपली, थरिया चुईर देवै हम बटलोही कै
फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ

फौतिअहवा के मानलौं कहना, बेच देलौं सब अप्पन गहना
लेल्लक रिक्शा जे अद्धा में, पीकै गिरैलक ऊ खद्धा में
सुरस ऐसन करजा उमरै, फिकिर कहाँ छै ऊ कोढ़ी केय्
फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ

दरबज्जा के गिरलै खम्मा, बिना दबा के कुहरै अम्मा
छोट बुतरूआ कानै खाय लेय, फीस बिना नै स्कूल जाय लैय्
एगो बोतल चौंसठ फेरा, हँसै निपुतरा बस ही-ही केॅ
फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ

मरबै तय् हम मरबै करबै, आय फैसला करबे करबै
नौ की छौ सब आइये होतै, आय राय की छाइये होतै
बोतले पर जब मरलै मुंशा, की करबै अब हम्मे जी केॅ
फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ

नै मानतै तय् जैबै लैहरा, आब न देखबै ओक्कर चेहरा
आब न फुसफुस, आव न चुप्पा, बड़ा सतैलक ई मुँहधुप्पा
दीने में लगतै चकचोन्हीं, छोय्र देबै जब ई देहरी केॅ
फेर मुझौसा ऐलै पी केॅ