एक मध्यम आकार के हाल में
सैंकड़ों लोगों के सामने
प्रवचन दे रहे थे
श्वेताम्बर जैन मुनि
गर्मी के थे दिन
पंखे थे बंद
इसलिए नहीं कि
बिजली थी गई हुई
बल्कि मुनि के सि(ान्त थे यही
पास के घर में
चल रहा था जनरेटर
थोड़ा ही सही
शोर तो था ही
लाख वीतराग सही मुनि
अखरा तो होगा उन्हें भी
इसी बीच आ गई बिजली
चल पड़ा हाल के बीच का एक पंखा
कई आवाजें उठी एक साथ
‘बंद करो! बंद करो!
पंखा बंद करो’
मैं था हैरान इतनी देर
नहीं कहा किसी ने जाकर
जनरेटर वाले से कि
बंद करो
अब जब वह बंद हो ही गया था
साफ-स्पष्ट सुनने लगी थी
मुनि की वाणी