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मूर्तिकार-3 / प्रेमचन्द गांधी

अनगिनत शीश झुकेंगे
इस मूरत के आगे श्रद्धा में

नहीं जानेगा कोई
इसके विधाता का नाम

फिर भी नतमस्तक होंगे
जैसे धरती पर मत्था टेककर
हाथ जोड़ रहे हों सूर्य के