Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 13:13

मूर्ति / निदा नवाज़

मैं दुखों की छैनी से
तराशता हूँ अपनी
जीवन शिला
और एक दिन
खड़ी हो जाती है
मेरे समक्ष
स्वयं मेरी मूर्ति
दुखों की नाशक बनकर.