पंसारी के कट्टे में से चुपके से उड़ा
दाँत में दबा, फुदक कर ले गई चुहिया-
हल्दी का, सौंठ का एक टुकड़ा।
पहुँच गई-अँधेरे में, गहरे लम्बे बिल में-
(उसके लिए तो मानो ब्रह्माण्ड अखिल में!)
बोर्ड पेंट करवा कर लगवा दिया उस ठौर-
”होलसेल किराणा स्टोर,
खुल गया है आज।
-प्रोप्राइटर-चूहिया बजाज।“
फटे कपड़े की चिंदी
दर्जी की कतरनों में से, कुछ साफ,
कुछ धूल-मिट्टी से सनी, गंदी।
दाँतों में दबा, फुदक कर ले गई लीरी चुहिया
बोर्ड पेंट करवा कर लगवा दिया-
”रिटेल-होलसेल क्लॉथ स्टोर
-प्रोप्राइटर-चूहिया।“
आकाश विराट्, नीला, अनन्त
दिशाएँ सब मुक्त,
ऋतुएँ-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, वसन्त।
पर, नक्शानवीस ने भी तो नक्शा बनाया आलीशान
और सीमा-रेखाओं के बाहर चारों ओर लिख दिया सप्रमाण-
‘रेगिस्तान, रेगिस्तान, रेगिस्तान!’
तीनांे जगह लिखा था-
आओ, भाइयो आओ,
बैठो, जल पीओ,दम लगाओ, सुस्ताओ,
सोओ, बैठो, आपके लिए खुला है सोफा, चौपाल, आँगन।
इतमिनान से यहाँ करवाओ-
अपनी-अपनी रचनाओं का खात्रीबंद मूल्यांकन।
साम्राज्यवाद से लेकर साम्यवाद तक के विचार का मज़ा-
यहीं पातालयंत्र से बनता है दिमागी रूहअफ़जा!
1986