मरने के बाद
आदमी अचानक नहीं गायब हो जाता है
घर से
धीरे-धीरे मिटता है उसका वजूद
घर के कोने-अन्तरे से
एक रोज़ उठाकर
कोई पहन लेता है
उसकी कमीज़
किसी के पाँव में फ़िट बैठ जाता है
उसका जूता
फालतू चीज़ समझकर
कोई ले जाता है उसकी क़लम
और एक दिन उसका बिस्तरा भी
खिसक जाता है
उसके बिस्तर पर सोने वाला
क्या उसी तरह सपना देखता है
उसे भी डर लगता है सपने में ?
मरने के बाद
आदमी
अचानक नहीं गायब हो जाता है
घर से
लेकिन धीरे-धीरे एक दिन
घर से
गायब हो जाती है
उसकी पार्श्व-छाया भी ।
फिर वह देखने के लिए
नहीं लौटता है
किसके हिस्से लगी उसकी आदमियत
उसके जीवन-भर की कमाई जमा-पूँजी !
लेकिन सचमुच मर जाता है
आदमी उसी दिन
जिस दिन अपने लोगों की स्मृतियों से
निकल जाता है ।