बार - बार
घर के दरवाजे पर
दस्तक देती
मुहजोर
बुदबुदाती रहती है वह
अब ही आयेगी
तो फटकारेगी
ढीठ को -
इधर का
रुख न करना
तुम से नहीं
जीवन से
प्रेम करती हूँ
शांत होते ही
फिर बैठ जाती है
प्रतीक्षा में वह
सांकल खटखटाने की
बार - बार
घर के दरवाजे पर
दस्तक देती
मुहजोर
बुदबुदाती रहती है वह
अब ही आयेगी
तो फटकारेगी
ढीठ को -
इधर का
रुख न करना
तुम से नहीं
जीवन से
प्रेम करती हूँ
शांत होते ही
फिर बैठ जाती है
प्रतीक्षा में वह
सांकल खटखटाने की