कभी देखी है क्या होती है ’’मृत्यु गंध’’
युगों से जंग लगे ताले के पास से कभी गुजरो
महसूस करना कोई शेष रहा स्पन्दन,
इंतजार में जड़ होती किसी विरहन को देखना
सूखी बंजर आँखों से खरपतवार निकालते हुए,
निशानियाँ फेंकने से पहले अवशेषी स्मृतियाँ गाड़ते हुए
दिवागंत सैनिक की माँ की आवाज सुनना,
अंतिम सफर से ठीक पहले
नाभि चक्र में अटके
हारा के शेष जुडाव को
झटक कर तोड़ने से ही
उपजती है ये विशेष गंध,
चिता दहकने से पहले ही कितना कुछ दहक चुका होता है,
संगम के घाट पर बहने वालों में अक्सर
सूखी सरस्वती भी ढूढ़े से नहीं मिलती।