शायद ये पोएटिक जस्टिस था
कि जो पहला ऐसा कागज़ मेरे हाथ आया
स्याही बही जा रही थी,
शब्द मानों डबडबाई आँखों से लिखे।
एक शब्द, आखिरी प्रमाण कि
मेरे पास का एक व्यक्ति
परछाईं हो चुका।
कितने कितने गुम गये
कश्मीर में, छत्तीसगढ़ में, बंगाल में,
और सब जगहों के साथ मोकोन्दो में।
चाँद के नीचे रोज़ गुम रहे इन लोगों को
शब्द भर परछाईं भी
नसीब नहीं।