माँ के नाम पर मैंने लगाए हैं ढेरों गुलाब
उनकी पँखड़ियों पर ठहरी बून्दें देखकर
बहुत याद आती है माँ
पिता के नाम पर लगाया है मैंने अशोक हरा-भरा
उसके पत्तों के बीच चिड़िया ने बनाया है घोंसला
मैं उसके बच्चों को उड़ते देखना चाहता हूँ
ताकि पिता को याद रख सकूँ हर उड़ान के दौरान
भाइयों के नाम मैंने लगाए हैं बाँस-वन
मुझे बाँसुरी प्रिय है और लाठियाँ भी
बाँस की जड़ों से जब भी नई कोंपल फूटती है
भाइयों की सुधि आ जाती है
पत्नी मुझे रचती है बार-बार अपने आईने में
वह जितना चाहती है मुझसे, देना चाहता हूँ, उससे ज़्यादा
उसे भामती बना देना चाहता हूँ
बच्चे गाते हैं, हँसते हैं, रूठते हैं
उन्हें खेलने, पढ़ने और बहस करने की पूरी छूट है
पर वे कभी-कभी इससे आगे जाना चाहते हैं
आग से खेलना चाहते हैं
उनकी ज़रूरतें समझनी हैं मुझे
उनकी बातें सुननी हैं मुझे