Last modified on 23 सितम्बर 2018, at 12:45

मेरी तरह / बालस्वरूप राही

कसमसाहट है अंधेरे में कहीं
रात भी सोई नहीं मेरी तरह

एक घायल स्वर अचानक चीखता
सामने लेकिन न कोई दीखता
मैं पुकारूँ तो सही किस को मगर
शाम से ही सो रहा सारा नगर।

बेसहारा इस क़दर इतना दुखी
विश्व में कोई नहीं मेरी तरह।

जो न करना था वही करता रहा
ऐर हर उपलब्धि से डरता रहा
मीडियाकर रह गया हर काम में
कुछ चमक आई न मेरे नाम में।

आज तक शायद किसी भी व्यक्ति ने
ज़िन्दगी खोई नहीं मेरी तरी।

तू सभी कुछ थी कभी मेरे लिए
क्या नहीं मैंने किया तेरे लिए।

व्यंग्य कर मुझ पर मगर ऐसे नहीं
देख मेरा दम न घुट जाये कहीं।

बेबसी मेरी समझनी है कठिन
तू कभी रोईं नहीं मेरी तरह।

यह अकेलापन मुझे पीने लगा
मैं नहीं यह ही मुझे जीने लगा
और थोड़ी देर का है सिलसिला
सोचना है व्यर्थ क्या खोया, मिला।

आज तक शायद किसी ने अश्रु से
हर खुशी धोई नहीं मेरी तरह।