Last modified on 10 दिसम्बर 2012, at 17:14

मेरे दोस्त / अरविंदसिंह नेकितसिंह

मेरे प्रगति पथ पर
आएँगे वे पल
होगा तू जब
मात्र एक ज़रिया ।
 
या कभी होगा तू,
अदॄश्य मेरे लिए
हूँगा जिस समय अभिजात्यों संग मैं ।
 
अवसर मिलने की, देरी बस होगी
भोंकूँगा छुरा,
फिर
छोड़ तुझे
खून से लथपथ
सरकूँगा रेंगता हुआ,
तेरी ही कुरसी पर
निगलता जैसा
अजगर
बिना डकार
शिकार का अपने…
  
आऊँगा ज़रूर
बाद में, आऊँगा ज़रूर,
बूँदें दो
बहाने,
अदा होगा तब
कर्ज़
दोस्ती का तुम्हारा...
  
पोंछ आँखें फिर,
चल दूँगा पुनः.
हाथों में छुरा
कोई अन्य दोस्त..
 
पर प्यारे मित्र मेरे!
तू निराश न होना,
रिश्ता तुम्हारे साथ ख़त्म न होगा यहीं
लौटूँगा अवश्य,
कभी किसी दिन,
माँगने तुझसे,
अदायगी उन दो बून्दों की,
हक अपनी
मैत्री का!