कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
जीवन की चिंता से विमुक्त
वे देवगणों से निखसाद
फिरते रहते, पाते निशिदिन
जीवन शुचिता का प्रसाद
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जीवन की चिंता से विमुक्त
वे देवगणों से निखसाद
फिरते रहते, पाते निशिदिन
जीवन शुचिता का प्रसाद