बेबाक मेरे सपने
अभी तक कहाँ आज़ाद हुए
इन सपनो में न जाने
कितने पहरेदार हुए
मैं मानव
जब भी ख़ुद को देखता हूँ
तब यही पता हूँ
आदिकाल से आज के उछाल तक
हर कालक्रम में हम किसी न
किसी के गुलाम हुए
हाँ मैं मानव कभी कह नहीं पाया
कि मैं आज़ाद हूँ
अपनी तरह से
अपने अपने जीवन में सब
किसी के मोहताज हुए
कसम खा के कहो
दुनियादारी निभाने वालो
इस जगत में रहने वालों
क्या तुम वफ़ा करके
बर्बाद नहीं हुए
ब्रह्मा ने रचा है इस संसार को
या डार्विन के विकासवाद ने
लेफ्ट ने बसाया है या राइट ने
कौन है निर्माता मेरा
राम ,कृष्णा , यीशु या
फिर कोई पैगम्बर
कौन तय करेगा ये
जिसकी जैसी दशा दिशा थी
वो उस गति से चलता आया
और निभाता आया है
विश्व की महान सभ्यताओ ने
मुझे कितनी विरासते दी
संस्कार और संस्कृतियो के नाम से
मैं अपने स्वार्थ से उन सब
अस्तिव को धूमिल कर डाला
जब जब मुझे वेदना हुई है
तब तब मुझे से सृजन हुआ है
आदि मध्य और अंत युग की
यही विकास रेखा है
मैं कहाँ से चला
था कहाँ पहुँच रहा हूँ
बेबाक और आज़ाद
सपनो को पूरा करने के लिए
मैं कहाँ कभी आज़ाद हुआ हूँ
अपने पथ पर बढ़ता हुआ नित मैं
नया विचार करता हूँ
मैं अभी कहाँ अपने सपनो से
आजाद हुआ हूँ।