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मैंने सारे जगत की स्याही घोंट ली है / अमृता भारती

मैंने सारे जगत की स्याही घोंट ली है
मैंने कालवृक्ष की टहनी तोड़ ली है
उसका सद्यजात माथा नीचे झुकता है
मेरी अनामिका का सर्पदंश सहता है