मुझे किसी से बदला नहीं लेना
किसी को बदलना नहीं
इतना भर चाहता हूं
कोई पछतावा न रहे
सुबह जब उठूं
बुरे सपनों के बुखार में बड़बड़ाता
मेरा भूत
मेरी बॉंह में न हो
चेहरा इतना अजनबी न हो
कि आईना किसी की तस्वीर लगे
कपड़े इतने अपने न हों कि
सपनों में भी नंगा न दिखूं
इतना पत्थर न हो हृदय
कि खुद की दया में रोता फिरूं
भीतर समुद्र हो
ऊपर आकाश
बाहर मैं जब तक रहूं
भीतर रहूं.