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मौन / लीना मल्होत्रा

वो सब बाते अनकही रह गई है
जो मै तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थी
हम भूल गए थे
जब आँखे बात करती है
शब्द सहम कर खड़े रहते है
रात की छलनी से छन के निकले थे जो पल
वे सब मौन ही थे
उन भटकी हुई दिशाओ में
तुम्हारे मुस्कराहटो से भरी नज़रो ने जो चाँदनी की चादर बिछाई थी
अँजुरी भर भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न-मन्त्र
याद है मुझे

अब भी मेरी सुबह जब ख़ुशगवार होती है
मै जानता हूँ ये बेवज़ह नही
तुम अपनी जुदा राह पर
मुझे याद कर रही हो