मौसम बसंती आया रे
आके बहूत लुभाया रे।
किवाड़ नहीं मैं लगाती हूँ
पिय लौट न जाएं घबराती हूँ
कान लगाए मैं रहती हूँ
आहट पर जग जाती हूँ
थपकी ने मुझे भरमाया रे
मौसम बसंती आया रे।
दुल्हन आज बनी है धरती
पर हरपल यह तडपती है
जब जब कोयल गाती है
तन-मन में आग लगाती है
रातों की नींद चुराया रे
मौसम बसंती आया रे।