मैं कुछ यतीम बच्चों को जानती हूँ
जिनके वालिदैन ज़िंदा हैं, उनके साथ रहते हैं
पर वह शजर नहीं बन सके अपनी औलाद के लिए
और बने भी तो बस उनके हिस्से की धूप छीनने!
जब इन बच्चों ने उन्हें अपनी तारीकियाँ दिखाई
दिखाए अपनी रानों के बीच पड़ी खरोंचों के निशान
अपनी हयात के छलनी हुए बेहिस हिस्से
तो उनके मुँह बाँध दिये गए अपनी इज़्ज़त का वास्ता देके
अपनी आँखों को बंद कर लिया गया और
छोड़ दिया गया बच्चों को उन्हीं तारीकियों से जूझने!
मैंने कभी अपने वालिदैन को नहीं दिखाई अपनी खराशें
कभी दिखाऊँगी भी नहीं, क्योंकि मुझे डर है
कहीं मैं भी उन्हीं बच्चों की तरह यतीम ना हो जाऊँ!