आख़िर क्यों है यह प्यार
कितना भयानक है प्यार
हमें असहाय और अकेला बनाता
हमारे हृदय-पटों को खोलता
बेशुमार दुनियावी हमलों के मुक़ाबिल
खड़ा कर देता हुआ निहत्था
कि आपके अंतर में प्रवेश कर
उथल-पुथल मचा दे कोई भी अनजाना
और एक निकम्मे प्रतिरोध के बाद
चूक जाएँ आप
कि आप ही की तरह का एक मानुष
महामानव बनने को हो आता
आपको विराट बनाता हुआ
वह आपसे कुछ माँगता नहीं
पर आप हो आते तत्पर सब कुछ देने को उसे
दुहराते कुछ आदिम व्यवहार
मसलन ...
आलिंगन
चुंबन
सीत्कार
बंधक बनाते एक-दूसरे को
डूबते चले जाते
एक धुँधलके में
हँसते या रोते हुए
दुहराते
कि नहीं मरता है प्यार
कल्पना से यथार्थ में आता
प्यार
दिलो-दिमाग को
त्रस्त करता
अंततः जकड लेता है
आत्मा को
और ख़ुद को मारते हुए
उस अकाट्य से दर्द को
अमर कर जाते हैं हम...