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यह बरसगाँठ / माखनलाल चतुर्वेदी

किस तरुणी के प्रथम-हृदय-अर्पण के साहस-सी ये साँसें,
और तरुण के प्रथम-प्रेम-सी जमुहाती, अटपटी उसाँसें,
गई साँस के लौट-लौट आने का यह
करोड़वाँ-सा क्षण
वह क्षण जो बनने आया है
परम याद के कर का कंकण।
टेढ़े पल,
उलझी घड़ियाँ,
काले दिन, ये--
मट्मैली रातें;
बन्दन, बलि, बन्दीगृह जिन पर
बोते रहे विषम सौगातें।
उन साँसों की एक डोर का
एक छोर,
बरस-गाँठ
तेरी यह बरस-गाँठ

रचनाकाल: बुरहानपुर--४ अप्रैल, १९३६