Last modified on 24 अगस्त 2012, at 13:06

यात्रा / कुमार अनुपम


हम चले
तो घास ने हट कर हमें रास्ता दिया

हमारे कदमों से छोटी पड़ जाती थीं पगडंडियाँ
हम घूमते रहे घूमती हुई पगडंडियों के साथ

हमारी लगभग थकान के आगे
हाज़ी नूरुल्ला का खेत मिलता था
जिसके गन्नों ने हमें
निराश नहीं किया कभी

यह उन दिनों की बात है जब
हमारी रह देखती रहती थी
एक नदी

हमने नदी से कुछ नहीं छुपाया
नदी पर चलाये हाथ पाँव
ज़रूरी एक लड़ाई सी लड़ी

नदी ने
धारा के ख़िलाफ़
हमें तैरना सिखाय