यादों के फूल आज फिर खिले आखिर क्यों हम फिर उस मोड़ पर मिले दिन कितने तपती दुपहरों से गुज़र ढले रेत हुईं शामें फिर मन की घाटी में पगलाई रातें भ्रम में भी हम इतना दूर चले