Last modified on 4 मई 2017, at 16:50

यादें / महेश सन्तोषी

यादें, प्यार की साँसे तो,
गिनती रहती हैं
पर, प्यार की धड़कनों को
न छू पातीं, न सुन पातीं
समय में सिमटकर भ!

समय को समेटकर चलता है प्यार
हार न भी माने पर,
यादों पर समय को
 जीत भी तो नहीं पातीं,
तुम्हारा विर्सजन,

एक निर्मम सत्य होकर भी
समय के सन्दर्भ में
तुम न उम्र की सुबह हो, न शाम हो
सिर्फ दोपहरी हो!