Last modified on 14 अक्टूबर 2012, at 01:03

याद / सुशीला पुरी

याद
याद आई ऐसे
जैसे, हवा आई चुपके से
और रच... गई साँस ,
बिना किसी आहट के
जैसे, दाखिल हुई धूप
कमरे मे
और भर गई उजास ,
जैसे खोलकर पिंजड़ा
उड़ गया पंक्षी
आकाश मे
और पंखों मे समा गया हो
रंग नीला- नीला ,
जैसे, झरी हो ओस
बिल्कुल दबे पाँव
और पसीज गया हो
मन का शीशा
उजली सी दिखने लगी हो
पूरी दुनिया.....,
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
और धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!