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युग्म / महेन्द्र भटनागर

चारों ओर फैली
मरुभूमि रेतीली
बुझते दीपक लौ-सी
भूरी
पिंगल।
पीत-हरित
जल-रहित

ढलती उम्र
मरणासन्न !

लेकिन
अनगिनती
लहराते ... हरिआते
मरुद्वीप !

कँटीले
पत्ते रहित
पनपते पेड़ —
जीवन-चिन्ह
पताकाएँ !

जलाशय —
आशय ... जीवन-द

प्राणद !